Jadid Khabar
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सरकार को जिद छोड़ कर वक्फ संशोधन अधिनियम को वापस लेना चाहिए: एडवोकेट सरफ़राज़ सिद्दीक़ी

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नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (मुसरत डॉट कॉम) दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव एवं सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील सरफ़राज़  अहमद सिद्दीक़ी ने वक्फ संशोधन अधिनियम पर चल रही सुनवाई के दौरान कई प्रावधानों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा अस्थायी रोक लगाये जाने का स्वागत करते हुए कहा कि सरकार को अपनी ज़िद  छोड़कर मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान करते हुए वक्फ संशोधन अधिनियम को वापस लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने न केवल सरकार को आईना दिखाया है, बल्कि उसकी साजिशों को भी विफल कर दिया है। उन्होंने कहा कि एक साधारण कानून का छात्र भी इतना मूर्ख होगा कि वह इस तरह का असंवैधानिक विधेयक पेश करेगा या उसे पारित कराएगा। उन्होंने कहा कि यह कानून कई मौलिक अधिकारों के खिलाफ है और कई प्रावधानों में अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों और शक्तियों के साथ टकराव करता है। इसके बावजूद, संसद के माध्यम से इसे पारित कराने के सरकार के प्रयास को मुसलमानों की भावनाओं से खिलवाड़ करने के अलावा और क्या कहा जा सकता है?
उन्होंने कहा कि पहले दिन की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह के सवाल उठाए हैं और वक्फ संशोधन अधिनियम के प्रावधानों पर जो प्रश्नचिन्ह लगाए हैं, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह कानून सुप्रीम कोर्ट में टिक नहीं पाएगा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि सर्वोच्च न्यायालय पूरे कानून को, या कम से कम उसके कुछ भाग को, खारिज कर देगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह से हमारी पार्टी कांग्रेस ने संसद से लेकर सड़क तक वक्फ संशोधन अधिनियम की कमियों को उजागर किया है, उस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए था, लेकिन सरकार इन बातों पर विचार करने के बजाय कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को परेशान करने के लिए भारतीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है।
श्री सरफराज सिद्दीकी ने कहा कि यदि धार्मिक समिति में अन्य धर्मों के लोगों को शामिल नहीं किया जा सकता तो मुस्लिम वक्फ बोर्ड की समिति में गैर-मुस्लिमों का शामिल होना क्यों जरूरी है? इससे सरकार की मंशा का अंदाजा लगता है। उन्होंने पूछा कि क्या भाजपा मंदिरों या अन्य धर्मों की समितियों में किसी मुस्लिम को शामिल करेगी। उन्होंने अपील की कि भारत शांति का उद्गम स्थल रहा है और इसे शांति का उद्गम स्थल ही रहने दें तथा इसे नफरत में न बांटें।

 

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