दलित/पिछड़े/मुसलमानों के जान-बूझकर किये गये इनकाउंटर
लखनऊ विवेक तिवारी इनकाउंटर प्रकरण-
दलित/पिछड़े/मुसलमानों के जान-बूझकर किये गये इनकाउंटर में चहुंओर चुप्पी और विवेक तिवारी इनकाउंटर प्रकरण पर मीडिया,सरकार व विपक्ष का चित्कार,यह कैसा ब्यवहार? .......
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यह देश सच मे अभिजात्य जनों का है।देश का मूलनिवासी बहुजन हजारो वर्ष पूर्व से गुलाम स्थिति में था, है और रहेगा।मीडिया,मुंहजोर जमात,शासन, प्रशासन,न्यायपालिका सब कुछ तो अभिजात्य जनों का है इसीलिए जो मुद्दा चाहा उसे उठाया और जो नही चाहा उसकी चर्चा भी न हुई।
यूपी में वर्तमान सरकार के सत्तासीन होते ही मुख्यमंत्री जी के इस निर्देश के बाद कि ठोक दो,बहुजनो की ठुकाई शुरू हो गयी।एक के बाद एक नोएडा में जितेंद्र यादव, मुकेश राजभर,सुमित गुज्जर,अलीगढ़ में नौशाद व मुस्तकीम,सुल्तानपुर में अम्बुज यादव आदि 66 लोग शूट किए गए।कुछ मर गए,कुछ जो बच गए वे घुट-घुट करके जीने को अभिशप्त हैं,इलाज तक के पैसे नही हैं।
मीडिया ने इन बहुजनो के मरने पर कोई रुदन नही किया।विवेक तिवारी के साले विष्णु शुक्ला जैसे लोगो ने इन एनकाउंटरों को महिमामण्डित किया।इन बहुजनो के एनकाउंटर पर बहुजन समाज के नेता कान में उंगली डाल लोरिकायन गाते रहे लेकिन विवेक तिवारी का इनकाउंटर क्या हुआ,सभी के सभी कुम्भकर्णी निद्रा से जग कर शोकाकुल हो विवेक तिवारी के घर हांफते हुए चल दिये।अखिलेश यादव जी विवेक तिवारी की पत्नी के लिए 5 करोड़ कम्पनसेशन मांगने लगे।मायावती जी ब्राह्मण उत्पीड़न से व्यग्र हो गईं।मीडिया के शोर में सारी जांच दब मामला एकपक्षीय हो गया।सरकार विवेक तिवारी के दरवाजे पर एक पैर पर खड़ी हो गयी।अखिलेश यादव जी दौड़ते हुए विवेक तिवारी के घर पँहुच गए जबकि विवेक तिवारी की पत्नी इन सारे चीजो से बेपरवाह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर दहाड़ती हुई मुआवजा व नौकरी की डिमांड करती रहीं और मुख्यमंत्री के दरबार मे हाजिर हो सन्तुष्ट भाव से प्रेस को सरकार पर विश्वास जताती दिखीं।
लोकतंत्र में दलीय सेटअप पर सब कुछ होता है।जैसे हमारा खेत है वैसे ही राजनैतिक दलों के अपने-अपने वोटबैंक रूपी खेत हैं।सभी दल अपनी-अपनी नीतियां अपने वोटबैंक को सहेजने के हिसाब से ही बनाते हैं।जो ऐसा नही करते वे गच्चा खाते हैं।दलों के संगठन व टिकट जातीय व अपनी पार्टीगत प्रतिबद्धता को देखते हुए ही दिए जाते हैं।यूपी में अब तक तो अहीर,चमार,पासी,भर,मुसलमान आदि मारे गए जो भाजपा के वोटबैंक नही हैं तो भाजपा को कोई चिंता नही रही।यहां तक कि नोएडा के जितेंद्र यादव के पिता मुख्यमंत्री आवास से धक्के देकर भगा दिए गए क्योकि वे भाजपाई वोटबैंक का हिस्सा नही थे लेकिन इन प्रकरणों में वे लोग भी मौन रहे जिनका जितेंद्र यादव जैसों का परिवार वोटबैंक है।ऐसी ही विपक्ष की चुप्पी सुमित गुज्जर,अम्बुज यादव, मुकेश राजभर,नौशाद,मुस्तकीम आदि के मुद्दों पर भी रही।मुझे याद है कि मेरे जिले में एक चिउन्टा यादव व दूसरा सुदामा यादव का भाई फर्जी एनकाउंटर में मारा गया था जिसके जांच हेतु तब श्री मुलायम सिंह यादव जी ने बाकायदे जांच कमेटी बनाकर लोकल स्तर पर पुरजोर विरोध करने का आदेश दिया था।वर्तमान समय मे विपक्ष भी मीडिया जनित मुद्दों पर ही रिएक्ट करता दिख रहा है जबकि उसे अपने वोटबैंक के उत्पीड़न पर अधिक चिंतित रहना व जरूरतनुसार आंदोलित होना चाहिए था।
अब जब सोशल मीडिया पर बहुजनो की ठुकाई पर गहरी निद्रा में सोए बहुजन नेताओ की धुलाई हुई है तो कुछ लोग सगबगाते दिख रहे हैं।मैं कहूंगा कि साहब! दल कोई धर्मशाला नही हैं कि कोई आया ठहरा और गन्दगी फैला कर चल दिया।दल एक निश्चित एजेंडा पर काम करने वाले उपक्रम हैं।हर दल का अपना एक वोटबैंक है जिसे सुरक्षित रखना उस दल के मुखिया की जिम्मेदारी है।जो दल अपने तय एजेंडा,निश्चित वोटबैंक की हिफाजत करने से चूक गया वह चुनावी वैतरणी पार करते समय समझ जाइये डूब गया।सबको साधने की भूल करने वाला राजनैतिक तौर पर अदूरदर्शी ही माना जायेगा।गौर से देखिए कि भाजपा अपने एजेंडा व वोटबैंक के प्रति कितनी जागरूक है कि विवेक तिवारी के इनकाउंटर पर पूरी तरह से डैमेज कंट्रोल पर उतारू हो गयी जबकि अपने वोटबैंक का हिस्सा न रहने वाले जितेंद्र यादव के बाप को धक्के मार करके भगा दी,नौशाद व मुस्तकीम की मौत पर उसे कोई गम नही है लेकिन इधर बहुजन नेता पौराणिक पात्र राजा बलि व कर्ण बने फिर रहे हैं।अपनो की कोई चिंता नही है और इनकाउंटर के बाद यथोचित कम्पनसेशन पा सरकार से संतुष्ट लोगो की चिंता में ये दुबले हुए जा रहे हैं।मानवीय आधार पर किसी की मौत पर दुखी होना चाहिए पर अपने प्रतिद्वंदी से सीखना भी चाहिए कि अपने वोटबैंक को कैसे सुरक्षित व सन्तुष्ट रखा जाता है।
विवेक तिवारी प्रकरण की सीबीआई जांच से ही यह सही-सही खुलासा हो सकेगा कि मध्य रात्रि में हुए इस इनकाउंटर का सच क्या है क्योकि मीडिया इस पूरे प्रकरण को एकपक्षीय बनाये हुए है।इसी तरह से सम्पूर्ण एनकाउंटरों का सीबीआई जांच क्यो न हो,यह भी एक अहम सवाल है?विपक्ष को क्या जितेंद्र यादव, सुमित गुज्जर,मुकेश राजभर,अम्बुज यादव, मुस्तकीम व नौशाद आदि 66 एनकाउंटरों के लिए सीबीआई जांच व विवेक तिवारी को मिले मुआवजा के समान मुआवजा की मांग अथवा खुद सरकार में आने के बाद इसे पूर्ण करने की बात नही करनी चाहिए,विपक्ष के समक्ष यह अहम सवाल है?
【चन्द्रभूषण सिंह यादव■प्रधान संपादक-"यादव शक्ति
कंट्रीब्यूटिंग एडिटर-"सोशलिस्ट फैंक्टर"】