सदाक़त नहीं उसमें न ही वफ़ादार है
रगों में दौड़ता जो प्यार का व्यापार है
क़सम तो वह यूं खाते हैं हर.बात पर
जैसे कहां उसको झूठ से सरोकार है
जो बार-बार दुहाई दे तुम्हें ईमान की
संभल जाओ ना होता व ईमानदार है
चेहरा मासूम यूं के सब फिसल जाए
जनाब होता नहीं सब बा- किरदार है
अक्सर झूठ पे मबनी है कुछ जिंदगियाँ
तभी फलता फूलता उसका कारोबार है
तिजारत तेरी अच्छी है माहिर जो ठहरे
न जाने कौन-कौन तुम्हारा तलबग़ार है