राजस्थान के कायमखानी बीरादरी की शादियो मे आज भी शाकाहारी भोजन का चलन कायम है।
जयपुर।
मोटेराव चोहान (राजपूत) के पुत्रों द्वारा इस्लाम धर्म अपनाने के बाद जो उनके वंशज के तौर पर चले आ रहे है। उन सभी को राजस्थान के मुस्लिम समुदाय मे कायमखानी बीरादरी के तोर पर जाना जाता है। राजपूत क्षत्रिय होने के कारण कायमखानी बीरादरी शाहकारी व मासाहारी होने के बावजूद इनकी शादियो मे आम दावत मे मासाहरी भोजन नही परोसा जाता है। जबकि मुस्लिम समुदाय की अधिकांश अन्य बीरादरीयो की शादियो मे आमतौर पर मासाहरी भोजन परोसने का चलन होना देखा जाता है।
राजस्थान के शेखावटी जनपद के अलावा डीडवाना क्षेत्र मे कायमखानी बीरादरी की गावं-गावं व शहर-शहर मे बडी बहुतायत है। जबकि इस क्षेत्र के अलावा मारवाड़, जयपुर शहर, बीकानेर सम्भाग के अलावा भीलवाड़ा जिले मे भी कायमखानी बीरादरी अच्छी खासी तादाद मे निवास करती है। इसके अलावा राजस्थान के सभी क्षेत्रो से कुछ कुछ कायमखानी सरकारी सेवा या तीजारत के साथ बच्चों को अच्छे इदारो से तालीम दिलवाने की गरज से गावं-कस्बों से निकलकर एक अच्छी खासी तादाद मे राजधानी जयपुर के झोटवाड़ा इलाके मे रहने लगे है।
शेखावाटी जनपद मे कायमखानी नवाबी व फिर शेखावत राजपूत के राव शेखाजी की हकुमत थी। तब से लेकर अब तक दोनो तरफ से बनी आम सहमति के कारण कायमखानी की रसोई मे गाय व राजपूत की रसोई मे झटके का मासाहरी पकवान नही बनने का सीलसीला आज भी कायम है। क्योंकि राजपूत गाय को माता व कायमखानी झटके के मटन को ठीक नही मानते है। इसलिए दोनो की आस्थाओं व मान्यताओं के अनुसार उक्त करार आज भी चला आता नजर आ रहा है।
कायमखानी बीरादरी आम तौर पर देहाती परिवेस मे रहने वाली बीरादरी मानी जाती है। इसलिए शादियो मे गावं स्तर पर सभी अन्य बीरादरीयो मे कायमखानी का जाना एवं उनके यहां अन्यो के आने के कारण किसी की भी आस्था व भावनाओं को चोट नही पहुंचे तभी तो कायमखानी बीरादरी की शादियों की आम दावत मे मासाहरी पकवान नही बनाये जाने की परिपाटी आज भी पहले की तरह चली आ रही है। इसके अतिरिक्त पूरानी परम्पराओं के मुताबिक भात व भात (मायरा) नूतने बहनो को भाइयों के आना, चूचक, आरता, परिवार के लोगो द्वारा शादी होने वाले लड़का या लड़की की अलग अलग दिन बंदोरा निकालना, बान-मांझा बैठाना, रातीजगा व भारत जाने के बाद महिलाओं द्वारा टूंटीया का खेल करना, जैसी अनेक रस्मे चाहे इस्लाम धर्म से मेल नही खाती हो पर सालो से चली आ रही परम्पराओ को कायमखानी बीरादरी आज भी शिद्दत के साथ उक्त रस्मों को निभाती आ रही है।
हालांकि पहले कायमखानी मर्दों का पहरान धोती व कमीज के साथ सर पर साफा पहने होने का होता था। लेकिन अब मर्दो के पहरान मे पूरी तरह बदलाव आ चुका है। वहीं महिलाओं का भी पहरान राजपूती लहंगा-कूर्ती होता था। पर यह पहरान अब मात्र डीडवाना के आस पास की कुछ महिलाओं मे देखा जाता है। बोली मे आज भी आखिर मे "सा" का उपयोग किया जाता है। जैसे बाबोसा, ताईसा, काकोसा-काकीसा, बाईसा आदि। कुछ अपवादों को छोड़कर आज भी कायमखानी बीरादरी स्तर पर एक गोत्र के लड़के व लड़की मे शादी का चलन नही पाया जाता है।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान मे शदियो पहले ददरेवा गावं के मोटेराव चोहान (राजपूत) के पुत्रो के इस्लाम धर्म अपनाने के बाद उनके वंशज कायमखानी बीरादरी मे आज भी शादियो मे अनेक परम्परा ऐसी है जीनका तालूक चाहे इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक ना हो, लेकिन अपनी सामाजिक तौर पर चली आ रही परम्पराओं को काफी हदतक आज भी अधीकांश कायमखानी निभाते आ रहे है।